नई दिल्ली। अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के बाद से भारत वेट एंड वाच की रणनीति पर चल रहा था, लेकिन अब भारत इस समस्या का समाधान निकालने में जुट गया है। अफगानिस्तान के प्रति भारत का रुख पहले से ही संवेदनशील रहा है। यही कारण है कि भारत अफगानिस्तान को 75 हजार टन गेहूं दो साल के भीतर दे चुका है और हाल ही में 50 हजार टन गेहूं भेजने की घोषणा की है, लेकिन ये प्रयास एकतरफा नहीं हैं।
भारत चाहता है कि इन प्रयासों के बदौलत इस क्षेत्र में स्थाई शांति बनाए रखने में मदद मिले। यही कारण है कि नई दिल्ली में आयोजित 7 देशों के शीर्ष सुरक्षा सलाहकारों ने अफगानिस्तान को वैश्विक आतंकवाद की पनाहगाह नहीं बनने देने के साथ समावेशी सरकार के गठन की भी अपील की है।
अफगानिस्तान को सीधे मदद भेज सकेंगे देश
इस सुरक्षा वार्ता के अंत में सभी सात देशों के अधिकारियों ने एक संयुक्त घोषणापत्र जारी किया, जिसमें अफगान की धरती से आतंकी गतिविधियों, प्रशिक्षण और वित्त पोषण नहीं करने देने की शर्तें शामिल हैं। इस दौरान अफगानिस्तान में निरंतर खराब हो रही सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और मानवीय हालातों पर न केवल चिंता जताई गई, बल्कि तत्काल सहायता उपलब्ध कराने की जरूरत पर भी बल दिया गया।
यह मदद भेदभाव रहित होगी और इसे मददगार देश सीधे भेज सकेंगे। इसे अफगानिस्तानी समाज के सभी वर्गो और धार्मिक अल्पसंख्यकों को समता और जरूरत के आधार पर दिया जाएगा।
सत्ता के संघर्ष के कारण मारे जा रहे हैं लोग
तालिबानी कब्जे के बाद से ही भारत की चिंता रही है कि कहीं अफगानिस्तान पाकिस्तान की तरह आतंकी कुचक्रों का गढ़ न बन जाए। हालांकि अभी तक ऐसा होते दिख नहीं रहा है, अलबत्ता अफगान में ही हो रहे आतंकी हमलों से वहां रोज नागरिक मारे जा रहे हैं और लाखों नागरिक जीवन की सुरक्षा की तलाश में पलायन कर रहे हैं।
इन हमलों का एक कारण तालिबान के भीतरी गुटों में सत्ता संघर्ष भी है। इस लिहाज से इस घोषणापत्र में सभी देशों ने आतंकवाद से लड़ने में जो सहमति जताई है, वह अहम है।