Masaan Holi
Masaan Holi

Holi 2023: होली रंगों का त्योहार है लेकिन, क्या आप जानते हैं। लेकिन भारत में एक ऐसी जगह जहां रंग की जगह श्मशान की राख राख से होली खेली जाती हैं। आज हम आपको इल लेख में ऐसी जगह के बारे में बताएंगे।

होली पूरे भारत में अलग-अलग तरीके से मनाया जाने वाला त्यौहार है। कहीं लोग रंगों से तो कहीं फूलों से होली खेलते है। आज हम आपको बताएंगे होली के एक अनोखे रंग के बारे में जहां लोग रंग, गुलाल या फूलों से नहीं बल्कि श्मशान की राख से होली खेलते हैं। जिसे ‘मसान होली’ के नाम से जानते हैं।

उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर वाराणसी (काशी) में महा-श्मशान कहे जाने वाले मणिकर्णिका घाट पर ‘मसान होली’ का पर्व बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। भगवान शिव के भक्त यहां चिताओं की राख से होली खेलते हैं। डमरू की गूंज के साथ शिव भक्त घाट स्थित मसान नाथ मंदिर में पूजा करते और भगवान को भस्म चढ़ाते हैं और बाद में सब एक दूसरे के भी भस्म लगाकर होली खेलते हैं।

आइए जानते हैं इसके पीछे की मान्यताएं-

होली रंगों का त्योहार है लेकिन, क्या आप जानते हैं। एक ऐसी जगह भी हैं जहां राख से होली खेली जाती है और भी शमशान की चिता की राख से। आपको सुनने में शायद यह अजीब लगे लेकिन यह सच है। चिताओं की राख से भी होली खेली जाती है। दरअसल, काशी के महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट में चिता की राख से होली खेलने की पुरानी परंपरा है।

काशी के महाश्मशान रंगभरी एकादशी जिसे आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन हरिश्चंद्र घाट पर चिता की राख से होली खेलने की परंपरा रही है। काशी के महाश्मशान में चौबीस घंटे चिंता जलती रहती है। ऐसा कहा जाता है कि यहां कभी भी चिंता की आग ठंडी नहीं होता है। वैसा तो साल भर यहां लोग मायूस रहते हैं लेकिन, होली के मौके पर यहां लोग खुशियां मनाते हैं। जानते हैं आखिरी कैसा शुरू हुई यह परंपरा।

हरिश्चंद्र घाट पर क्यों चिता की राख से खेली जाती है होली-

इस साल 3 मार्च को रंगभरी एकादशी के दिन वाराणसी में महाश्मशान में चिता की राख से होली खेली जाएगी। इस दौरान यहां, डमरू, घंटे और म्यूजिक सिस्टम से जोरों से संगीत बजता है। ऐसी मान्यताएं हैं चिता की राख से होली खेलने की परंपरा करीब 300 साल से भी ज्यादा पुरानी है।

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मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव विवाह के बाद माता पार्वती को इस दिन गौना कराकर काशी पहुंचे थे। उसके बाद उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी। लेकिन, वह भूत, पिशाच और अघोरियों के साथ होली नहीं खेल पाए थे। तब उन्होंने रंगभरी एकादशी के दिन चिता की राख से इन सभी के साथ होली खोली थी। इसलिए आज भी यहां यहीं परंपरा चली आ रही है। हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती के बाद ही चिता की राख से होली खेलना शुरू किया जाता है।

मसान घाट

16वीं शताब्दी में जयपुर के राजा मान सिंह ने गंगा नदी के किनारे मणिकर्णिका घाट पर मसान मंदिर का निर्माण कराया था। गौरतलब है कि मणिकर्णिका घाट पर हर दिन लगभग 100 शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। जिसमें 5,7,9 तथा 11 मन लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। (एक मन यानी 40 किलोग्राम) ये लकड़ी इन पांच पेड़ों की होती है जिन्हें पंचपल्लव कहा गया है जिसमें नीम, पीपल, बरगद, पाकड़ और आम की लकड़ी शामिल है। एक अनुमान के मुताबिक मसान होली के उपलक्ष में लगभग 4000 से 5000 किलो लकड़ी जलाई जाती है।