नई दिल्ली। तमिलनाडु में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में सीडीएस जनरल बिपिन रावत शहीद हो गए। ये पहली बार नहीं है जब उनका सामना मौत से हुआ था। इससे पहले भी दो बार वो मौत से सामना कर चुके थे। एक बार पाकिस्तानी सेना की गोली लगी पर जनरल रावत उस दर्द को हंसकर झेल गए। दूसरी बार नागालैंड के दीमापुर में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में जनरल रावत बाल-बाल बच गए।
बात उन दिनों की है जब 17 मई साल 1993 में बिपिन रावत 5/11 गोरखा राइफल्स में मेजर के पद पर तैनात थे। तब वो कश्मीर के उरी इलाके में कुछ जवानों के गश्त पर थे। अचानक पाकिस्तानी सेना ने उनपर गोलियां दागनी शुरू कर दी। एक गोली मेजर रावत को भी लग गई। मेजर रावत के टखने में गोली लगते ही वहां की हड्डी चूर हो गई। उन्हें आनन-फानन में अस्पताल में भर्ती कराया गया। उन्हें वो ठीक तो हो गए पर उन्हें डर था कि प्रॉपर न चल पाने के कारण सेना में आगे की राह मुश्किल न हो जाए। हालांकि उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा चलने की कोशिश करने लगे। उनके जोश और दृढ़ संकल्प के आगे टखना का दर्द ऐसा काफूर हुआ कि वो पहले जैसे हो गए।
दूसरी घटना तब की है जब 2015 में बिपिन रावत लेफ्टिनेंट जनरल थे। 3 फरवरी 2015 को सुबह रावत, एक कर्नल और दो पायलट के साथ चीता हेलिकॉप्टर से उड़ान भरने के लिए तैयार हुए। हेलिकॉप्टर जमीन से 20 फीट ऊपर गया, तभी इंजन फेल हो गया और वो जमीन पर आ गिरा। वहां भी शहीद बिपिन रावत को मौत मानो छूकर निकल गई।