खजुराहो के मंदिर

खजुराहो के मंदिर मैं यहां पत्थर भी बोलते हैं!  

खजुराहो का ध्यान आते ही हमारे मन में मंदिरों की ऐसी सुंदर । नगरी की तस्वीर उभरती है, जहां । अध्यात्म के सानिध्य में मिथुन मूर्तियों का एक ऐसा विलक्षण संसार रचा -बसा हुआ है, जिसका सम्मोहन सारी दुनिया में व्याप्त है। खजुराहो के इन मंदिरों का शिल्प उत्कृष्टता की पराकाष्ठा है, तो इनका ऐतिहासिक वैभव सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया की अनमोल धरोहर है।

बुंदेलखंड की माटी में स्थित छोटे से कस्बे खजुराहो की ख्याति पूरे विश्व में ‘बोलते पत्थरों’ के शहर के रूप में है। यहां के मंदिरों के पाषाण पर उकेरा गया मूर्ति शिल्प इतना जीवंत है कि लगता है कि जैसे अगले ही पल ये मूर्तियां हलचल करने लगेंगी। इन्हें देखते हुए तन्मय हो जाना सहज है। खजुराहो के मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से तो अनूठे हैं ही, इन पर उकेरी गयी मूर्तियों में प्रेम और उल्लास का प्रदर्शन भी मनोहारी है। इन प्रस्तर प्रतिमाओं पर जिन भाव-भंगिमाओं का अंकन है, उनकी तुलना में पाश्चात्य के कला चित्र भी फीके जान पड़ते हैं । ये नारी प्रतिमाएं चंदेल काल में समाज की खुली सोच का परिचय देती हैं। अपनी इन्हीं विशेषताओं के चलते खजुराहो के मंदिरों को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। इस शहर का नाम खजुराहो इसलिए पड़ा क्योंकि प्राचीन काल में यह नगरी खजूर के पेड़ों से घिरी हुई थी। आरंभ में खजूरपुरा 

और खजूरवाहिका के नाम से पुकारे जाने वाले इस शहर को बाद में खजुराहो कहा जाने लगा। चंदेल राजाओं ने 950 से 1050 ईस्वी के बीच यहां इन विश्व प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया। आरंभ में इन मंदिरों की संख्या 85 थी। अब इनकी संख्या लगभग 20 ही रह गयी है। कहा जाता है कि मंदिरों के विशाल समूह (पश्चिम समूह) की खोज सन 1938 में एक ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन टी. बर्ट को अपनी यात्रा में कहारों से मिली जानकारी के आधार पर हुई। इन मंदिरों को भौगोलिक दृष्टि से तीन भागों में विभाजित किया गया है। पश्चिमी समूह के मंदिरों में कंदरिया महादेव, चौसठ योगिनी, चित्रगुप्त मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, लक्ष्मण मंदिर तथा मतंगेश्वर मंदिर आते हैं, जबकि पूर्वी समूह के मंदिरों में पार्श्वनाथ मंदिर, घटाई मंदिर, आदिनाथ मंदिर के अलावा ब्रह्मा, वामन आदि हिन्दू देवताओं के मंदिर हैं। दक्षिणी समूह के मंदिरों में दूल्हादेव मंदिर तथा चतुर्भुज मंदिर हैं।

ये भी देखना न भूलें

खजुराहो के मंदिर के पास ही स्टेट म्यूजियम है, जिसमें पूरे मध्यप्रदेश की जनजातीय और लोक कला के नमूने रखे हैं। पास ही पुरातत्व संग्रहालय है, जिसमें चंदेलकाल से संबंधित 10 से 12 वीं सदी की पूर्ण एवं खंडित प्रतिमाएं संरक्षित हैं। अगर आप अपनी यात्रा में थोड़ा रोमांच जोड़ना चाहते हैं, तो खजुराहों से मात्र 32 किलोमीटर दूर स्थित पन्ना नेशनल पार्क की सैर भी कर सकते हैं। केन नदी के किनारे स्थित इस नेशनल पार्क में खजुराहों से सिर्फ  आधा घण्टे की यात्रा करके पहुंचा जा सकता है। इस पार्क में शेर के अलावा चीता, भेड़िया और घड़ियाल के साथ ही नील गाय, सांभर और चिंकारा के झुण्ड देखे जा सकते हैं।

रनेह जलप्रपात

खजुराहो से 20 किलोमीटर दूर केन नदी पर रनेह जलप्रपात है। इसे रनेह फाल्स के नाम भी जाना जाता है। चट्टानों के बीच स्थित इस जलप्रपात का नजारा बेहद खूबसूरत है। जो लोग प्राकृतिक सौंदर्य को पसंद करते हैं, यह जगह उनके लिए किसी जन्नत से कम नहीं है। यहां सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जाना चाहिए, जब सूरज की रोशनी ग्रेनाइट की चट्टानों पर पड़ती हैं, तो ये देखने में काफी आकर्षक लगती हैं। 

कालिंजर और अजयगढ़ के किले

मैदानी इलाकों से थोड़ा आगे विन्ध्य के पहाड़ी हिस्सों में अजयगढ़ और कालिंजर के किले हैं। कालिंजर का प्राचीन किला खजुराहो से 105 किलोमीटर दूर है|

जबकि दो प्रवेश द्वार हैं। उत्तर में एक दरवाजा और दक्षिण-पूर्व में तरहौनी द्वार है। इन दरवाजों तक पहुंचने के लिए चट्टान पर 45 मिनट की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।  किले के बीचों बीच झील है, जिसके अन्त में जैन मंदिरों के अवशेष बिखरे पड़े हैं। झील के किनारे प्राचीनकाल कुछ मंदिरों को भी देखा जा सकता है।