Shivani didi
Shivani didi

भोपाल। सुप्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय वक्ता एवं मोटिवेशन गुरु बीके शिवानी दीदी शुक्रवार 3 फरवरी से दो दिवसीय दौरे पर भोपाल आ रही हैं। वे ब्रह्माकुमारीज के सुख शांति भवन, मेडिटेशन रिट्रीट सेंटर नीलबड़ में इमोशनल हीलिंग -अ प्रोसेस ऑफ सेल्फ एंपावरमेंट विषय पर सभी को संबोधित करेंगी।

शाम को 5:00 से 7:00 बजे के बीच में सुख शांति भवन में नवनिर्मित अनुभूति सभागार में कार्यक्रम आयोजित किया गया है। यह कार्यक्रम केवल आमंत्रित मेहमानों के लिए रखा गया है। दूसरे दिन प्रातः 5:45 से 6:45 तक ब्रह्माकुमारीज़ संस्था के भाई- बहनों के लिए शिवानी दीदी नवनिर्मित अनुभूति सभागार में प्रेरक उद्बोधन देंगी।

सत्संग से ही जाग्रत होगा हमारा विवेक: भक्तिप्रभा

भोपाल। वर्तमान समय में जब हम घोर भौतिकवाद की ओर बढ़ रहे है तब, सदाचार के पथ पर चलने के लिये विवेक ही हमारा मार्गदर्शक हो सकता है। हमारे ऋषि मुनियों ने इसलिए ही इस विवेक को जाग्रत करने के लिये सत्संग का विशेष महत्व बताया है। हम सबका भी कर्तव्य है कि हम विवेक को बनाए रखने के लिये संतों का सान्निध्य प्राप्त करते रहें।

परमपूज्य स्वामी राजेश्वरानंदजी की सुपुत्री दीदी भक्तिप्रभाजी ने मानस भवन में श्रद्धालुओं को प्रवचन देते हुए सत्संग की महिमा का बखान देते हुए उक्त उद्गगार व्यक्त किए। वे मानस भवन के कीर्तिपुरुष पंडित रमाकांत दुबे स्मृति समारोह की पंच दिवसीय प्रवचन श्रृंखला के द्वितीय दिवस प्रवचन दे रही थीं। वे श्रीराम कथा की चौपाई ‘तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।। तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।’ को केंद्र में रखकर श्रद्धालुओं को प्रवचन दे रही थीं।

आपको दिव्यांग बना सकता है यह मच्छर, रहें सावधान

सत्संग की गंगा में अवगाहन से कौआ कौयल हो जाता है और बगुला हंस बन जाता है-

आपने आगे कहा कि एक क्षण का सत्संग इस जन्म की नहीं अनेक जन्मों की बिगड़ी को बना सकता है। गोस्वामीजी तुलसीदासजी ने तो कहा है बिगरी जनम अनेक अवहि सुधरी आज, होहिअ राम को नाम भज तुलसी तज कुसमाज। अर्थात जब हम श्रीराम कृपा से सत्संग से कुसंग का त्याग कर देते है तो उसी समय हमें उसका सुफल मिल जाता है। श्रीरामचरितमानस में भी वर्णन आया है कि सत्संग की गंगा में अवगाहन से कौआ कौयल हो जाता है और बगुला हंस बन जाता है। इसका आध्यात्मिक अर्थ बताते हुए कहा है कि मनुष्य में ये दो वृत्त्तियां काग और बगुले के रूप् में विद्यमान हैं, ये यदि बदल जाए तो कर्कशता और कपट दोनों समाप्त हो जाते हैं। यही सत्संग है। इस कार्यक्रम केशुभारंभ में मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव ने कहा कि

सत्संग से विवेक के साथ सुख भी प्राप्त होता है। पर इसके लिए हमें श्रीराम की भक्ति के साथ उनकीशक्ति को भी जाग्रत करना होगा। तभी हम मानव संस्कृति की रक्षा कर सकते है। आपने इस संबंध में निराला जी कीशक्ति पूजा का उदाहरण देते हुए कहा कि महाकवि ने भक्ति के साथ शक्ति को महत्व देने की बात अपने इस काव्य के माध्यम से हम सबके सामने रखी है। हमारे ऋषि मुनियों ने भी भगवान श्रीराम को दिव्यास्त्र प्रदान करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर संकेत किया है।

कार्यक्रम में तुलसी मानस प्रतिष्ठान के कार्याध्यक्ष रघुनंदन शर्मा, सचिव कैलाश जोशी , प्रभुदयाल मिश्र, डॉ.राजेश श्रीवास्तव, सुशीला शुक्ला, महेश सक्सेना, उमाशंकर वर्मा, जानकीशुक्ला, मिथिलेश शर्मा, प्रहलाददास मंगल, अशोक भटट्, दामोदरप्रसाद श्रीवास्वत, सुरेश तांतेड़ आदि ने पूज्य दीदीजी का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन आयेजन समिति के अध्यक्ष कमलेश जैमिनी द्वारा किया गया।