भोपाल। बच्चों को शुरुआत में अंग्रेजी शिक्षा देने के स्थान पर मातृभाषा में शिक्षा देने की प्राथमिकता रखने की आवश्यकता है। हम सभी को परिवार में वार्तालाप करते समय मातृभाषा में बात करना चाहिए। यह बात सदानंद सप्रे ने मातृभाषा समारोह के समापन सत्र में कही। उन्होने कहा कि दुनिया के शिक्षाशास्त्री और मानस शिक्षाविदों का मत है कि प्राथमिक अवस्था में बालक-बालिका मातृभाषा में बात करेंगे तो सहजता से उसे ग्रहण कर पाएंगे।
उन्होंने कहा कि कि मामा, चाचा, ताऊ, फूफाजी इत्यादि का अपना महत्व है। बच्चों द्वारा अंकल-आंटी कहने से रिश्तों के भावों के समाप्ति हो रही है। ऐसा करने से बचना चाहिए। उन्होने सभी से अपनी मातृभाषा में रिश्तों को संबोधित करने की बात कही। सप्रे उपस्थित सभी जनों से मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए बालक-बालिकाओं को मातृभाषा में कहानी, कविताएं पढ़ाने का आव्हान किया। इसके साथ ह सभी से मातृभाषा के प्रति आत्मचिंतन और आत्मनिरीक्षण करने की बात कही। इस दौरान मंच पर भोपाल के प्रसिद्ध ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश सेठी, मातृभाषा मंच के अध्यक्ष एसके रावत उपस्थित थे। मंच का संचालन अमिताभ सक्सेना ने किया। देश भर के विभिन्न भाषाई समाज की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ ही दो दिवसीय मातृभाषा समारोह सम्पन्न हुआ। इस समारोह में लोगों ने देश के अलग-अलग व्यंजनों का खूब स्वाद चखा।
देश को भाषा और संस्कृति के आधार पर बनाना जरूरी
प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश सेठी ने कार्यक्रम को संबोधित किया। मातृभाषा पर बोलते हुए उन्होने कहा हमारी भाषाएं भले ही अलग हैं परंतु संस्कृति सबकी एक ही है। देश की विभिन्न भाषाएं जब भारत की सांस्कृति में मिलती हैं तो यह सब एक हो जाती है। उन्होने भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए सभी से सकारात्मक मानसिकता बनाये रखने की बात कही। उन्होंने नेपोलियन, अलेक्जेंडर, जूलियस सीजर से शिवजी की तुलना करते हुए कहा, इन तीनों की मानसिकता संकुचित थी। इस वजह से वे शक्तिशाली होने के बावजूद लोगों से नहीं जुड़ पाए। उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज भले ही आगरा हार गए थे लेकिन लोगों ने उनका स्वागत किया। क्योंकि शिवाजी ने भाषा आधार पर लोगों को जोड़ने का कार्य किया।
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डॉ सेठी ने पाकिस्तान पर तंज कसते हुए कहा कि पाकिस्तान पंथ के आधार पर बना था इसलिए यह सभी के सामने कटोरा हाथ में लेकर खड़ा है। उन्होंने देशों को भाषा और संस्कृति के आधार पर बनाने की बात कही। विवेकानंद को याद करते हुए डॉ सेठी ने कहा कि जब हम सब एकजुट होंगे तभी अपना भारत परम वैभवशाली सम्पन्न राष्ट्र बनेगा।
प्रस्तुतियों में दिखी विविधता में एकता की झलक
कार्यक्रम के समापन सत्र में देश के विभिन्न भाषायी समाजों ने राज्यों की संस्कृतिक प्रस्तुतियों दीं। इनमें विविधता में एकता की झलक देखने को मिली। कार्यक्रम में एम्स भोपाल मलयाली एसोसिएशन के कलाकारों द्वारा भगवान शिव के जन्मदिन पर की जाने वाली केरल की अनोखी विधा तिरुवातिराक्कलि का मंचन किया। कुमाऊंनी, गढ़वाली और नेपाली, गोरखा संस्कृति को अपने में समेटे उत्तराखंड के गढ़वाली भाषायी समाज के कलाकारों द्वारा लोकनृत्य की प्रस्तुति दी गई। सुआ नृत्य, करमा नृत्य, दंडा नृत्य , राउत नृत्य , सरहुल नृत्य , बार नृत्य , नाचा नृत्य, धासियाबाना नृत्य, पंथी नृत्य से पहचान रखने वाले छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी भाषायी समाज द्वारा फसल कटने के बाद महिलाओं और पुरुषों द्वारा समूह में गाकर और नाचकर ख़ुशी मानाने वाले सुआ एवं करमा लोकनृत्य किया गया।
प्रसिद्ध भोजपुरी लोकगीत कजरी की प्रस्तुति
भोजपुरी भाषायी समाज के कलाकारों द्वारा पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध भोजपुरी लोकगीत कजरी की प्रस्तुति दी गई। संगीत के क्षेत्र में बेहतर स्थान रखने वाले कन्नड़ भाषाई समाज के कलाकार द्वारा जनपद गीते एवं कन्नड़ राष्ट्रभक्ति गीत, मरुभूमि राजस्थान के सुरों पर राजस्थानी परिवार ने पल्लो लटके गीत पर नृत्य प्रस्तुति दी। सदियों से जगन्नाथ जी की रथयात्रा की गवाह ओडिशा के उड़िया भाषी समाज द्वारा प्रस्तुत कृष्णा एवं गोपियों की रासलीलाएं, तेलुगु भाषाई समाज द्वारा प्रसिद्ध श्री बाला मुरली कृष्ण जी की रचना पर आधारित आंध्र प्रदेश की स्वदेशी नृत्य शैली कुचिपुड़ि नृत्य की प्रस्तुति दी गई। भगवान गणेश की महागणपति के रूप में आराधना करते हुए तमिलनाडु की एक लोकनृत्य विधा कुथु में कुछ पश्चिमि कला को मिश्रित कर सुन्दर प्रस्तुतीकरण किया गया। बड़ी संख्या में उपस्थित जनों में इन संस्कृतिक प्रस्तुतियों का आनंद उठाया। वहीं सदियों से जगन्नाथ जी की रथयात्रा की गवाह ओडिशा के उड़िया भाषी समाज द्वारा प्रस्तुत कृष्णा एवं गोपियों की रासलीला का सुन्दर प्रस्तुतीकरण किया गया।