बहुत कम लोग जानते हैं सन 1960 की इस घटना को
80 दौड़ों में से 77 में मिले थे अंतरराष्ट्रीय पदक
एशियाई खेलों में चार और 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण पदक प्राप्त कर देश को गौरवान्वित करने वाले,’फ्लाइंग सिख’ के नाम से प्रसिद्ध धावक स्व.मिल्खा सिंह जी की जयंती पर कोटिश: नमन्।
अपने खेल व कार्यों से आपने जो देश की सेवा की है,वह अद्वितीय है। आप दिलों में जिंदा रहेंगे। pic.twitter.com/acp8gL3gKQ
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) November 20, 2021
उड़न सिख यानी मिल्खा सिंह को उनकी जयंती पर पूरे देश ने याद किया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, खेलमंत्री यशोधरा राजे सिंधिया, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल सहित देश की बड़ी हस्तियों ने इस मौके पर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
देश का गौरव बढ़ाने वाले धावक, पद्मश्री से सम्मानित ‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन।
वह हर भारतीय खिलाड़ी के लिए हमेशा प्रेरणा स्रोत रहेंगे।#MilkhaSingh pic.twitter.com/V5WBblJ2Rb— Yashodhara Raje Scindia (@yashodhararaje) November 20, 2021
अपने खेल कौशल से लोगों के दिलों में खास स्थान बनाने वाले, ‘फ्लांइग सिख’ के नाम से प्रसिद्ध, पद्मश्री धावक श्री मिल्खा सिंह जी को उनकी जयंती पर सादर नमन।
देश के युवा खिलाड़ियों को सदैव उनसे प्रेरणा मिलती रहेगी। pic.twitter.com/bU4Ad9e8JP— Manohar Lal (@mlkhattar) November 20, 2021
अपने अद्भुत प्रदर्शन से वैश्विक पटल पर माँ भारती को अनेक बार गौरवभूषित करने वाले महान धावक ‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह जी को उनकी जयंती पर कोटिशः नमन।
उनकी अटूट मेहनत और ध्येय के प्रति प्रतिबद्धता सभी युवा खिलाड़ियों के लिए महान प्रेरणा हैं।
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 19, 2021
20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा पंजाब (अब पाकिस्तान में) पैदा हुए मिल्खा सिंह ने देश को एथलेटिक्स में कई उपलब्धियां दिलाईं। मिल्खा सिंह का इसी साल 91 वर्ष की आयु में 18 जून को कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया था। आइए जानते हैं मिल्खा सिंह कैसे बने उड़न सिख।
1958 ओलंपिक मेें इतिहास रचने वाले मिल्खा सिंह ने दूसरी बार 1960 के ओलंपिक में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उनकी ये रेस काफी चर्चित रही थी। इस रेस में फ्लाइंग सिख कांस्य पदक से चूक गए थे। तब वे चौथे स्थान पर रहे, मगर उनका 45.73 सेकंड का रिकॉर्ड अगले 40 साल तक नेशनल रिकॉर्ड रहा। तीसरे स्थान पर रहकर दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस ने ब्रॉन्ज जीता था। इस रेस में 250 मीटर तक मिल्खा पहले स्थान पर भाग रहे थे, लेकिन इसके बाद उनकी गति कुछ धीमी हो गई और बाकी के धावक उनसे आगे निकल गए थे। खास बात ये है कि 400 मीटर की इस रेस में मिल्खा उसी एथलीट से हारे थे, जिसे उन्होंने 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में हराकर स्वर्ण पदक जीता था।
बता दें कि रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह पांचवीं हीट में दूसरे स्थान पर आए थे। क्वार्टरफाइनल और सेमीफाइनल में भी उनका स्थान दूसरा रहा था। इससे पहले सारी दुनिया ये उम्मीद लगा रही थी कि रोम ओलंपिक में कोई अगर 400 मीटर की दौड़ जीतेगा, तो वो भारत के मिल्खा सिंह होंगे। मगर लोगों को उम्मीद तो पदक की थी, लेकिन वे ऐसा करने में नाकाम रहे। हालांकि, पदक हारने के बाद भी मिल्खा को दर्शकों का खूब साथ मिला।
1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में ऐतिहासिक जीत से ज्यादा लोगों को रोम ओलंपिक में मिली हार का गम था। इस ओलंपिक के दौरान मिल्खा सिंह का नाम अंजान था। मगर पंजाब के एक साधारण लड़के ने बिना किसी खास ट्रेनिंग के दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस को पछाड़ते हुए इतिहास रच दिया था। मिल्खा ने कॉमनवेल्थ गेम्स में आजाद भारत का पहला गोल्ड मेडल अपने नाम किया था।
साल 1960 में मिल्खा सिंह ने पाकिस्तान में इंटरनेशनल एथलीट कंपीटशन में भाग लेने से इनकार कर दिया था। असल में वे दोनों देशों के बीच के बंटवारे की घटना को नहीं भुला पाए थे। इसलिए पाकिस्तान के न्योते को ठुकरा दिया था। हालांकि, बाद में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें समझाया कि पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखना जरूरी है।
इसके बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया। पाकिस्तान में इंटरनेशनल एथलीट में मिल्खा सिंह का मुकाबला अब्दुल खालिक से हुआ। यहां मिल्खा ने अब्दुल को हराकर इतिहास रच दिया। इस जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ यानी उड़न सिख की उपाधि से नवाजा। अब्दुल खालिक को हराने के बाद उस समय के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान मिल्खा सिंह से कहा था, ‘आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हे फ्लाइंग सिख के खिताब से नवाजते हैं।’ इसके बाद से मिल्खा सिंह को पूरी दुनिया में ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से जाना जाने लगा।
कभी कभार जब उनसे 80 दौड़ों में से 77 में मिले अंतरराष्ट्रीय पदकों के बारे में पूछा जाता था तो वे कहते थे, ‘ये सब दिखाने की चीजें नहीं हैं, मैं जिन अनुभवों से गुजरा हूं उन्हें देखते हुए वे मुझे अब भारत रत्न भी दे दें तो मेरे लिए उसका कोई महत्व नहीं है।’
नीरज चोपड़ा ने किया मिल्खा सिंह का सपना पूरा, लेकिन वे अपनी आंखों से नहीं देख सके
We lost a Gem. He will always remain as an inspiration for every Indian. May his soul Rest in peace🙏🇮🇳 pic.twitter.com/7gT2x8Bury
— Neeraj Chopra (@Neeraj_chopra1) June 18, 2021
मिल्खा सिंह की जीवन भर एक ही ख्वाहिश रही कि वे अपने जीवनकाल में किसी भारतीय को ओलंपिक में पदक जीतते हुए देखें। उनके इस सपने को पूरा किया टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक जीतकर, लेकिन मिल्खा सिंह इस स्वर्णिम लम्हे को अपनी आंखों से नहीं जीत सके। डेढ़ माह पहले ही वह दुनिया से विदा हो गए। नीरज चोपड़ा ने भी स्वर्ण जीतकर इस पदक को मिल्खा सिंह को समर्पित किया था। मिल्खा सिंह के निधन पर नीरज चोपड़ा ने ट्वीट कर उन्हें श्रद्धांजलि भी अर्पित की थी।