चंडीगढ़। मरते दम तक चलाते रहे लंगर और बोल गए कि उनके मरने पर लंगर बंद नहीं होना चाहिए।अपनी सारी संपत्ति बेचकर पीजीआई के बाहर 37 साल से लंगर चलाने वाले त्यागी पुरुष जगदीश लाल आहूजा का सोमवार को सुबह पीजीआई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। श्री आहूजा कैंसर ग्रस्त थे और उनका कैंसर का इलाज चल रहा था।
लंगर बाबा के नाम से थे मशहूर आहूजा
लंगर बाबा पीजीआई के साथ ही जीएमसीएच-32 के सामने भी मरते दम तक लंगर लगाकर लोगों का पेट भरते रहे। आहूजा की रविवार को जब तबीयत ज्यादा खराब हुई तो उन्होंने अपने सेक्टर-26 मंडी में लगर बनाने वाले संजीव को फोन किया कि उनके मरने के बाद भी लंगर चलता रहे। यही वजह है कि उनके निधन के बावजूद सोमवार सुबह पीजीआई के बाहर लगभग 700 लोगों को लंगर से भोजन बांटा गया।
2 शोरूम, 36 एकड़ जमीन और 16 माले की कोठी बेच डाली
श्री आहूजा ने 1981 में चंडीगढ़ क्षेत्र में लंगर लगाना शुरू किया था लंगर चलाने की प्रेरणा उनकी दादी माई गुलाबी से मिली थी। जो गरीबों के लिए अपने शहर पेशावर पाकिस्तान में लंगर चलाया करती थीं। 24 मई 1984 में अपने बेटे के जन्मदिन से की थी तब से अब तक अनवरत लंगर चल रहा है। लंगर सेवा के लिए उन्होने दो शोरूम, 16 माले की कोठी, 36 एकड़ जमीन व एक कोल्ड स्टोर बेच दिया
कीमो थेरेपी के दो घंटे बाद ही लंगर में जुट जाते थे
बताया जाता है कि वह कीमो थेरेपी करवाने के दो घंटे बाद ही लंगर सेवा में जुट जाते थे। आमतौर पर कीमो करवाने के बाद लोगों में उठने तक की ताकत नहीं बचती है लेकिन जगदीश लाल आहूजा जाने किस मिट्टी के बने थे कि वे सर्दी, गर्मी और बरसात में भी लंगर सेवा को नहीं छोड़ते थे।