Papmochani Ekadashi: पापमोचनी एकादशी जैसा कि वे अपने नाम से जाना जा रहा है कि पापों को नष्ट करने के लिए इस एकादशी को मनाया जाता है। पापमोचनी एकादशी हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन होता है। पापमोचनी एकादशी हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार चौत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस साल यह एकदाशी 18 मार्च 2023 शनिवार के दिन है।
साल भर में लगभग 24 से 26 एकादशी होती है और प्रत्येक एकादशी का अपना विशेष महत्व होता है, इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का भी है। पापमोचनी एकादशी के नाम से ज्ञात होता है कि यह पापों से मुक्ति कराने वाला व्रत है। इस व्रत का वर्णन ‘भविष्योत्तर पुराण’ और ‘हरिवासर पुराण’ में किया गया है। हिन्दू धर्म में ‘पाप’ का अर्थ ऐसे कर्म जो गलत होते हैं। ‘मोचनी’ का अर्थ, मुक्ति करना है। ऐसी मानयता है कि इस दिन व्रत रखकर विधि- विधान से पूजा करने से जानें- अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है।
पापमोचनी एकादशी की पूजा विधि-
इस व्रत को करने के लिए दशमी की रात में ही व्रत का स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद व्रत का संकल्प करना चाहिए। इसके बाद श्रद्धा भक्ति के साथ विधि पूर्वक श्री भगवान का पूजन करना चाहिए।
पापमोचनी एकादशी के दिन पूरे समर्पण के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। व्रत करने वाले व्यक्ति को सूर्योदय के समय उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए। भगवान विष्णु की एक छोटी मूर्ति पूजा स्थल पर रखी जाती है और भक्त भगवान को चंदन का लेप, तिल, फल, दीपक,गंध, पुष्प, दीप, नैवेद्य आदि अर्पण करने के बाद जप, स्तोत्र पाठ, हवन, भजन कीर्तन आदि करें, फिर द्वादशी को पुनः पूजन करना चाहिए। इस व्रत को एक बार शुरू करने के बाद लगातार करना चाहिए, किंतु यदि शारीरिक रूप से ऐसा करने में असमर्थ हैं तो उद्यापन कर देना चाहिए।
इस दिन ’विष्णु सहस्त्रनाम’ और ’नारायण स्तोत्र’ का पाठ करना शुभ माना जाता है। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उन्हें विदा करें फिर भोजन करें।
पूजा विधि और महत्व-
पापमोचनी एकादशी व्रत के महत्व का वर्णन ‘भविष्योत्तर पुराण’ और ‘हरिवासर पुराण’ में किया गया है। ऐसा कहा गया है कि पापमोचनी व्रत सभी पापों के प्रभाव से मुक्त करता है। पापमोचनी एकादशी व्रत पालन करने से हिन्दू तीर्थ स्थलों पर जानें व गायों के दान से भी अधिक पुण्यदायी होता है। इस शुभ व्रत का पालन करने वाले सभी सांसारिक सुखों का आनंद लेते हैं और अंततः भगवान विष्णु के स्वर्गीय राज्य ‘वैकुंठ’ में स्थान पाते हैं।
व्रत कथा
प्राचीन समय में चित्ररथ नामक एक रमणीक वन था। इस वन में देवराज इन्द्र गन्धर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छन्द विहार करते थे। मेधावी नामक ऋषि भी वहाँ पर तपस्या कर रहे थे। ऋषि शिव उपासक तथा अप्सराएँ शिव द्रोहिणी अनंग दासी थी।
एक बार कामदेव ने मुनि का तप भंग करने के लिए उनके पास मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। युवावस्था वाले मुनि अप्सरा के हाव भाव, नृत्य, गीत तथा कटाक्षों पर काम मोहित हो गये। रति-क्रीड़ा करते हुए 57 वर्ष व्यतीत हो गये। एक दिन मंजुघोषा ने देवलोक जाने की आज्ञा माँगी।
मंजुघोषा के आज्ञा माँगने पर मुनि की चेतना जगी और उन्हें आत्मज्ञान हुआ कि मुझे रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजुघोषा ही है। उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे डाला। श्राप सुनकर मंजुघोषा ने काँपते हुए मुक्ति का उपाय पूछा। तब मुनि ने पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने को कहा। वह मुक्ति का उपाय बताकर पिता च्यवन के आश्रम में चले गये। श्राप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने पुत्र की घोर निन्दा की तथा उन्हें पापमोचनी चौत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी। ऋषि मेधावी ने भी पापमोचनी व्रत किया और अपने पाप से मुक्त हुए। पापमोचनी व्रत के प्रभाव से मंजुघोषा अप्सरा पिशाचनी देह से मुक्त होकर देवलोक चली गई।