भोपाल। मध्यप्रदेश के पंचायत चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण मामले ने भाजपा-कांग्रेस दोनों को दुविधा में डाल दिया है। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण के बिना दोनों ही दल चुनाव नहीं कराना चाहते हैं क्योंकि इसमें दोनों ही अपना-अपना नफा नुकसान देख रहे हैं। इस मामले में अब केंद्र सरकार भी शामिल हो गई है।

इस मामले में केंद्र सरकार ने पक्षकार बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को याचिका दायर कर दी है। अब मामले की सुप्रीम कोर्ट में 3 जनवरी को सुनवाई होगी। दूसरी तरफ सरकार के पंचायत राज संशोधन अध्यादेश वापस लेने के बाद गेंद राज्य निर्वाचन आयोग के पाले में आ गई है। अब देखना यह है कि राज्य निर्वाचन आयोग क्या निर्णय लेता है।

सरकार के अध्यादेश वापस लेने और इस पर राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद आयोग ने बैठक बुलाई। इसमें आयोग के आयुक्त बसंत प्रताप सिंह, प्रमुख सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास उमाकांत उमराव, सचिव राज्य निर्वाचन आयोग बीएस जामोद सहित अन्य अधिकारी मौजूद रहे।

बैठक में मौजूदा चुनाव प्रक्रिया को लेकर विचार किया गया। आयुक्त सिंह ने बताया कि अब आयोग अध्यादेश वापस लेने से बनी परिस्थितियों के मद्देनजर कानूनी सलाह ले रहा है। चुनाव को लेकर आयोग निर्णय विधिक सलाह मिलने के बाद लेगा।

राज्य निर्वाचन आयोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित (पंच, सरपंच, जनपद और जिला पंचायत सदस्य) पदों को छोड़कर चुनाव करा रहा था। चूंकि जिस अध्यादेश के आधार पर चुनाव कार्यक्रम घोषित हुआ था, सरकार ने उसे ही वापस ले लिया है, इसलिए चुनाव प्रक्रिया स्थगित करना पड़ेगा।

सीएम शिवराज सिंह चौहान ने सॉलिसिटर जनरल के साथ की चर्चा
पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई रोक को बहाल कराने के लिए शिवराज सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जा चुकी है। इस पर तीन जनवरी को सुनवाई प्रस्तावित है। इसको लेकर मुख्यमंत्री ने रविवार को दिल्ली में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कानून विशेषज्ञों के साथ बैठक की।