भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इस साल होने वाले विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव का एजेंडा लगभग साफ कर दिया है। इस दौरान उन्होंने जीत का नया मंत्र देते हुए कहा कि पसमांदा मुसलमानों को पार्टी से जोड़ें। उन्होंने नेताओं को विशेष तौर पर नसीहत देते हुए कहा कि मुस्लिम समाज के बारे में गलत बयानबाजी न करें। सभी धर्मों और जातियों को साथ लेकर चलें। पीएम ने कहा कि कोई हमें वोट दे या न दें, लेकिन सबसे संपर्क बनाएं।
मध्यप्रदेश में बीजेपी इस तबके के बीच अपनी पैठ जमाने की रणनीति पर काम कर रही है। भोपाल में मंगलवार को प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में पसमांदा मुस्लिमों को रिझाने के रोडमैप पर चर्चा हुई है। इसे बीजेपी की रणनीति में एक बड़े बदलाव के तौर पर भी देखा जा रहा है।
25% सीटों पर अहम भूमिका
एमपी में 7 सीटें पसमांदा (अपने ही समाज में पिछड़े हुए मुस्लिम) बाहुल्य हैं। वहीं 5 जिलों में इनके वोट निर्णायक हैं। भोपाल की उत्तर और मध्य विधानसभा के अलावा प्रदेश की 25% सीटों पर मुस्लिम वोट बैंक बड़ी भूमिका निभाता है। इनमें भोपाल की नरेला विधानसभा, बुरहानपुर, शाजापुर, देवास, रतलाम सिटी, उज्जैन उत्तर, जबलपुर पूर्व, मंदसौर, रीवा, सतना, सागर, ग्वालियर दक्षिण, खंडवा, खरगोन, इंदौर-एक, देपालपुर में मुस्लिम वोटरों का प्रभाव है। हर विधानसभा सीट पर इनकी उपस्थिति अच्छी खासी संख्या में है, जिनमें करीब 44 जातियां जैसे राइनी, इदरीसी, नाई, मिरासी, मुकेरी, बारी, घोसी शामिल हैं।
पसमांदा मतलब पिछड़े और दलित मुस्लिम
‘पसमांदा’ फारसी का शब्द है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है ‘पस’ और ‘मांदा।’ ‘पस’ का मतलब होता है पीछे और ‘मांदा’ का मतलब होता है छूट जाना। इस लिहाज से विकास की दौड़ में पीछे छूट गए लोगों को ‘पसमांदा’ कहा जाता है। मुस्लिम समाज का सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा तबका ‘पसमांदा’ कहलाता है।
कौन हैं पसमांदा मुसलमान?
2011 की जनगणना के अनुसार मध्यप्रदेश की कुल आबादी में 6.57 प्रतिशत मुसलमान हैं यानी राज्य में करीब 50 लाख मुस्लिम आबादी हैं। प्रदेश में मुस्लिम समुदाय में पसमांदा मुस्लिमों की संख्या करीब 60 प्रतिशत बताई जाती है, जबकि 15 प्रतिशत में सैयद, शेख, पठान जैसे उच्च जाति के मुसलमान हैं। इन्हें अगड़ा मुसलमान कहा जाता है। ये सामाजिक और आर्थिक तौर पर मजबूत हैं और सभी सियासी दलों में इन्हीं का वर्चस्व रहा है, जबकि पसमांदा समाज सियासी तौर पर हाशिए पर ही रहा है। जानकार कहते हैं कि इस्लाम में जाति भेद नहीं है, लेकिन भारत में मुसलमान अनौपचारिक तौर पर तीन कैटेगरी में बंटे हैं, ये अशराफ, अजलाफ और अरजाल। अशराफ समुदाय सवर्ण हिंदुओं की तरह मुस्लिमों में संभ्रांत समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है। 52 में से 19 जिलों में मुसलमानों की आबादी 1 लाख से ज्यादा है। प्रदेश के भोपाल जिले की कुल आबादी में 22 प्रतिशत तो बुरहानपुर जिले की कुल आबादी में 24 फीसदी मुसलमान हैं।
मिशन 2023 : चुनावी रणनीति बनाने भोपाल में जुटे भाजपा के दिग्गज
बीजेपी का मकसद?
पसमांदा मुस्लिमों को अपने पाले लाने की बात पर राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि बीजेपी अपने ऊपर लगे मुस्लिम विरोधी टैग को हटाकर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को संदेश देना चाहती है कि वह पिछड़े मुस्लिमों की हिमायती है। प्रदेश में मुस्लिम आबादी 60 लाख से ज्यादा है। इसमें पसमांदा मुसलमानों की हिस्सेदारी 60% (36 लाख) से ज्यादा है। अब तक पारंपरिक तौर पर यह तबका कांग्रेस को वोट देता आया है।
हर जिले में आयोजित होगा हितग्राही सम्मेलन
मप्र बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष रफत वारसी कहते हैं कि यह सच है कि हम पसमांदा मुसलमानों के बीच काम कर रहे हैं। आगे की रणनीति यह है कि हर जिले में मुस्लिम समुदायों का हितग्राही सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं। इसकी शुरुआत मार्च महीने से हो जाएगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश की कुल आबादी का साढ़े सात प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम है। इनमें 60% से अधिक पसमांदा मुसलमान हैं।