मप्र के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में महिलाओं में एनीमिया उन्मूलन को लेकर कार्य करने वाली भोपाल की डाॅ. लीला जोशी को भी पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। वे रेलवे से सेवानिवृत्त होने के बाद लंबे समय से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में माताओं और बेटियाें का नि:शुल्क इलाज करने के साथ ही एनीमिया उन्मूलन का काम कर रही हैं। इस मौके पर उनकी बड़ी बहन चन्द्रकला पन्त और छोटी बहन डॉक्टर गायत्री तिवारी भी उपस्थित थीं।

डाॅ. लीला जोशी को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा 2020 में ही हो गई थी, लेकिन कोरोना काल के कारण उन्हें यह सम्मान 2021 में दिया गया। इसके पहले 2016 में भी राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी उन्हें सेवा कार्यों के लिए सम्मानित कर चुके हैं।

बचपन से ही बनना चाहती थीं डॉक्टर
डॉ. लीला जोशी का जन्म 1938 में मध्य प्रदेश के रतलाम में एक शिक्षक परिवार में हुआ था। बचपन में ही उन्होंने डॉक्टर बनकर राष्ट्रसेवा करने का संकल्प ले लिया था। आर्थिक समस्याओं के बावजूद 1961 में उन्होंने इंदौर के महात्मा गांधी मेडिकल कोलेज से एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई पूरी की, जिसके बाद पश्चिम रेलवे में उनकी पदस्थापना मेडिकल अधिकारी के रूप में हुई। भारतीय रेलवे में सेवा देते हुए वे मुख्य चिकित्सा अधिकारी के रूप में सेवा निवृत्ति हुईं। इस दौरान उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों में सेवाएं दीं।

मदर टेरेसा से मिलने के बाद मजबूत हुआ सेवा का संकल्प
बाद में ‘मदर टेरेसा’ के सम्पर्क में आने के बाद उनकी समाज सेवा की इच्छा प्रबल हुई। आजीवन अविवाहित रहते हुए उन्होंने दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों की कन्याओं एवं माताओं  में खून की कमी की समस्या से जूझने का इरादा किया। यह सिलसिला उनके रिटायरमेंट के बाद और तेज हुआ। उन्होंने रतलाम के पास के आदिवासी बाहुल्य जिले झाबुआ को अपना केन्द्र बनाया एवं वहां लगातार गहन जनसम्पर्क के जरिए बच्चियों एवं माताओं को पोषण की महत्ता समझाने का कार्य वे अब भी कर रही हैं।

उनके द्वारा लगातार किए जा रहे प्रयासों का ही परिणाम है कि झाबुआ में पिछले 20 सालों में बाल मृत्युदर एवं कन्या मृत्युदर में बहुत सुधार हुआ है। जिसके बाद उनकी ख्याति भारत सहित सारी दुनिया में तेजी से फैलने लगी। वर्ष 2016 में उन्हें भारत सरकार का ‘नारी शक्ति सम्मान’ दिया गया। मध्य प्रदेश सरकार भी उन्हें सम्मानित कर चुकी है।