भोपाल। तेजी से मोबाइल गिरफ्त में घिरते जा रहे इस युग में किताबों की तरफ से लोगों का रुझान कम होता जा रहा है। हजारों दुर्लभ किताबों को सहेजने वाली राजधानी भोपाल की आठ दशक पुरानी इकबाल लाइब्रेरी आमदनी कम, खर्चा ज्यादा की मुश्किलों में भी गिरफ्त है। इसके व्यवस्थित संचालन के लिए भी कोशिशें की जा रही हैं और इसको पुनर्जीवित करने के लिए सरकारी मदद के विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है।
इकबाल लाइब्रेरी की वार्षिक बैठक हुई
शहर के मध्य स्थित करीब 80 साल पुरानी इकबाल लाइब्रेरी की वार्षिक बैठक हुई। जिसमें कार्यकारिणी के सदस्य सचिव राशिद अंजुम ने लाइब्रेरी की सालाना रिपोर्ट पेश की। उन्होंने इसके साथ 80 साल के अप-डाउन के बारे में भी बात की। उन्होंने पुस्तकालय के वित्तीय बोझ का भी उल्लेख किया। अंजुम ने मोबाइल युग में पढ़ने वाले सदस्यों की संख्या बहुत कम होने पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि छात्रों को हर विषय की किताबें उपलब्ध कराने, नोट्स बनाने आदि की सुविधा होने पर पुस्तकालय का पूरा रिकॉर्ड रेख़्ता फ़ाउंडेशन को भेजा जा रहा है। बैठक के दौरान इस बात पर भी चिंता की गई कि 84 साल का लंबा अरसा होने के बावजूद इस पुस्तकालय की उन लोगों द्वारा भी उपेक्षा की जाती है, जो इससे लाभान्वित होते हैं।
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लाइब्रेरी में आमदनी कम और खर्च ज्यादा
साथ ही चर्चा में ये भी आया कि लाइब्रेरी में आमदनी कम और खर्च ज्यादा के हालात बने हुए हैं।राशिद अंजुम पिछले 60 साल से अवैतनिक सेवा कर रहे हैं। अब वे 85 साल की उम्र की दहलीज पर पहुंच रहे हैं, लेकिन सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक वे सतत काम करते रहते हैं। उनकी सेहत इसकी इजाजत नहीं देती। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रयोगशाला के संस्थापक सदस्य हसन मुस्तफा के युवा पुत्र को सचिव बनाने का विचार व्यक्त किया गया। जिसे अध्यक्ष सैयद मुनव्वर अली व उपाध्यक्ष कलीम अख्तर व कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। कार्यकारिणी सदस्य एसएम असगर ने सरकारी सहायता की ओर ध्यान दिलाया और प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की बात कही।